जीवन - राजू उपाध्याय
Mar 4, 2024, 22:40 IST
| मन योगी है तेरे द्वारे, अब तुम कर दो सुनहरी शाम,
सांझ-सकारे मैने सूने घाटों पे, तेरे लिखे सौ सौ नाम।
प्रथम दृष्टि का नैन मिलन, मन-मंदिर में आ ठहरा है,
उर आंगन महका कर, अब तुम कर दो तीरथ धाम।
पंचामृत घोलो जीवन में,,जो तेरा ज्योति-प्रसाद बने,
वर्षा की घनघोर छटा में,ज्यों निकले उजियारी घाम।
वृंदावन की कुंजगली में, ब्रज के रज-कण में तुम हो,
मन योगी मेरा खाली लौटा,,कहां बसे हो तुम श्याम।
तुम योगेश्वर ! तुम परमेश्वर ! तुम गीता ,रामायण हो,
मन के चित्रकूट में बसते,, तुम ही तो सीता के राम।
करो पांचजन्य का शंख घोष, तुम धरती की पीर हरो,
संहार करो ! संचार करो ! अब तुम कर दो सारे काम।
- राजू उपाध्याय (स्वरचित), एटा , उत्तर प्रदेश