है श्रवण व्याकुल व्यथित प्रिय - अनुराधा पांडेय

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आज सुनने को व्यथा सब...

मैं करूँ आह्वान तेरा

प्राण में निजता भरूँ प्रिय!

युग -युगों तक साथ चलकर,

पल्लवित उर को करूँ प्रिय!

दग्ध हृदया!धीर धर कर

तोड़ दो मिथ्या प्रथा सब....

दृश्य इक तेरे सिवा सब,

हैं निरर्थक प्राण दाहक ।

व्यर्थ सब संवाद जग के ,

क्लेश देते शूल वाहक ।

पीर तनया !छोड़ भी दो ,

दंश लेना अब वृथा सब--

आज सुनने को व्यथा सब ।

छीनकर अलिपुंज से प्रिय!

अर्क तेरे तन मलूं मैं,

ओस की कणिका धवल ले,

धूल धूसित पग धुलूँ मैं,

अश्रु निलया!अब न बरसो

याद करके निज कथा सब..

आज सुनने को व्यथा सब ।

आज नीरव रात्रि में प्रिय !

खोल दूँ उर कक्ष अपना ।

आँख मूदूं माथ रख मैं,

पास रख आ ! वक्ष अपना ।

छोड़ इक तू और  मैं को..

मेट दो जग के तथा सब ।

आज सुनने को व्यथा सब ।

- अनुराधा पांडेय , द्वारिका , दिल्ली