भीषण गर्मी - भूपेन्द्र राघव
Jun 4, 2024, 22:41 IST
| कच्ची रोटी पक जायेगी,
चकले पर बिलते-बिलते,
और पजामा इस्त्री होगा,
दर्जी के सिलते-सिलते।
तीन दिनों के बासी होंगे,
फिर भी गर्म पकौड़े जी,
छाता लेकर चला करेंगे,
बन्दर हाथी घोड़े जी।
रुई की जगह रजाई में,
फिर बर्फ भराई जायेगी,
चार चार कपड़े पहनाकर,
सजा दिलाई जायेगी।
यह हँसने की बात नहीं है,
ऐसा होने वाला है,
अपनी वसुंधरा को हमने,
खुद ऐसा कर डाला है।
देखो तो सूरज की आखें,
हर दिन चढ़ती जाती है,
तीखी तीव्र-ताप तलवारें,
हर दिन गड़ती जाती हैं।
ग्लेशियर सब पिघल रहे हैं,
शीघ्र लुप्त हो जायेंगे,
पादप जीव-जंतु सारे ही,
चिर-निंद्रा सो जायेंगे।
जागे नहीं अगर अब भी तो,
भीषण गर्मी वार्निंग से,
तब क्या संभव हो पायेगा,
बचना ग्लोबल वार्मिंग से।
- भूपेन्द्र राघव, खुर्जा, उत्तर प्रदेश