तुम नहीं तो कुछ नहीं - अनुराधा पाण्डेय

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कितने प्रिय ये भी क्रम पथ के ।

क्षण रो लेना क्षण मुस्काना ।

क्षण विरह तपन का शाप वरें

क्षण वरें मिलन औ परिरंभन ।

जीवन को है प्रिय ! गति देता ,

मृदु सुधियों का भी आलंबन ।

पतझर हो जब मन कानन में-

यादों का मधुवन ले आना ।

क्षण रो लेना क्षण मुस्काना ।

आओ ! मिलकर उर घट भर लें,

क्षण सुमनों से क्षण शूलों से ।

जीवन की अड़चन को ढ़क लें ,

सुख-दुख से बुने दुकूलों से ।

अनुकूलन औ प्रतिकूलन का---

यह काल नियत ताना-बाना ।

क्षण रो लेना क्षण मुस्काना।

- अनुराधा पाण्डेय, द्वारिका, दिल्ली