मैं माली अपनी बगिया का - सुनील गुप्ता

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मैं माली अपनी बगिया का

सीचूं निशदिन प्रेम प्यार से    !

नित उठकर अलभोर संभालूं....,

और करूं बातें स्नेह लाड़ से  !!1!!

है मेरी बगिया अति सुंदर

और खिले पुष्प भांति-भांति के !

देख हर्षाए तन-मन जीवन......,

और चले गाए गीत ख़ुशी के !!2!!

हरेक पल-पल ये मुस्काएं

और सुनाएं अपनी कहानी  !

देख दिनकर को आते ही......,

शुभानन पर छाए रौनक सुहानी !!3!!

इनकी मस्त हवा संग बातें

सुन-सुन दिल मेरा सरसाए  !

और महक उठे ये कानन उपवन....,

दसों दिशाएं आनंदरस भर जाए !!4!!

दिनभर काम करके जब लौटूं

तो, ये करें स्वागत सब मिलकर   !

इनसे करके दिल की बातें.....,

हो जाऊं आनंद से तरबतर  !!5!!

हैं ये मेरी जान से बढ़कर

और इनसे पाता नित संदेश  !

खिला रहूं जीवन में हरदम.....,

और भरूं ऊर्जा से सारा परिवेश !!6!!

है मेरी खुशियों की अजब कहानी

इनसे शुरू और इनपे ही खत्म  !

नित भरते ये मुझमें जवानी.....,

जोश उत्साह और उमंग  !!7!!

ग़र चाहें भरना जीवन में आनंद

तो, लगाएं अपने घर बगिया !

और चलें पालते पोसते उन्हें.....,

वो भर देंगी जीवन में खुशियाँ  !!8!!

एक बार माली बनके तो देखो

फिर खिल उठेगा सारा वातावरण  !

जीवन में बरसेगा आनंद चहुँओर.....,

और मुस्कुराएगा घर का आँगन प्रांगण !!9!!

सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान