मैं दीपक हूं - सुनील गुप्ता

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मैं हूं दीपक, तुम हो बाती

करते चलना रोशन जीवन   !

बाधाएं कैसी भी आएं......,

सदा रहे आलोकित जीवन !!1!!

मैं हूं चकोर, तुम हो स्वाति

मुझमें समा बन जाए मोती !

बरसों बरस की ये तपस्या......,

आखिर जीवन में खिल आती !!2!!

तुम हो रोशनी, मैं पतंगा

फ़िर-फ़िर के मैं तुझपे आता !

करके जीवन अपना अर्पण...,

तुझमें ही मैं लीन होता  !!3!!

तुम हो कमल, मैं हूं भंवरा

रुप रस का मैं दीवाना  !

दिनभर तुझपे ही मंडराता....,

तुझमें ही मैं आ समाता !!4!!

मैं हूं आशा, हो तुम विश्वास

जीवन की हर पहेली बूझें  !

चले मिलाते जीवन नियति....,

एक दूज़े में स्वयं को खोज़ें !!5!!

- सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान