मानव मन इतना कलुषित कैसे ? - हरी राम यादव

 | 
pic

मानव मन में लिए घूम रहा,

विकट जहरीले विष दंत ।

नागों को भी पीछे छोड़ रहा,

जो काटकर करते प्राण अंत।

नित नए उपाय सोचता रहता,

विकासशील को कैसे करूं हंत।

इस बुद्धिशील से ज्यादा अच्छे,

प्रकृति में विचरित जीव जंत।

समाज में फैलाता कटुता ऐसी,

जिसका होता है प्रभाव अनंत।

खोदता रहता जन मन में खाईं,

जिसे नहीं पाट सकता तंत्र।

बांटता वहां भी वैमनस्यता,

जहां बसते सीधे सरल संत।

संबंधों की जहां नदियां बहती,

वहां भी फूंकता विद्वेष मंत्र।

मानव मन इतना कलुषित कैसे?

उसको कहते लोग कृति कंत।

नागफनी के पौधे रोपकर,

कहता ले आ रहा हूं बसंत।

हे मानव तुम मत बन दानव,

मानवता के हैं सुख अनंत।

परहित में मिलता प्रबल सुख,

परपीड़न का होता दुखद अंत ।।

 - हरी राम यादव, अयोध्या , उत्तर प्रदेश