कैसे हों बच्चों के खिलौने ? - अंजनी सक्सेना

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vivratidarpan.com - बच्चे भगवान की सबसे खूबसूरत देन हैं, जिन्हें देखकर मनुष्य अपने सारे दु:ख-दर्द भूल जाता है। बच्चे स्वयं एक सुंदर खिलौना होते हैं लेकिन प्रकृति के इस प्यारे से खिलौने को खुद के खेलने के लिये भी खिलौनों की तो जरूरत होती ही है। वैसे भी खिलौने तो होते ही बच्चों के लिये हैं।

खिलौनों द्वारा न केवल बच्चों का मनोरंजन होता है बल्कि उनसे वे बहुत कुछ सीखते भी हैं। याद कीजिये अपने बचपन की वह स्लेट जिस पर रंग बिरंगे मोती लगे हुए थे। हम सभी ने उस स्लेट के मोतियों से न केवल रंगों को पहचानना सीखा बल्कि गिनती करना भी उसी स्लेट के मोतियों ने हम सभी को सिखाया था। पढ़ाई के बीच स्लेट के नीचे लगे मोतियों से अठखेलियां करना सभी को बहुत अच्छा लगता था।

हर उम्र के बच्चों के लिये अलग-अलग तरह के खिलौने होते हैं। बहुत छोटे बच्चे ज्यादातर झूले या पालने में रहते हैं, तो उनके लिये झुनझुना सबसे अच्छा खिलौना होता है। झुनझुने की आवाज और चटख रंग बच्चों को बहुत अच्छे लगते हैं। जब बच्चा थोड़ा सा बड़ा हो जाता है और घुटने-घुटने चलने लगता है, तब वह हर चीज को मुंह में डालता है। इस समय बच्चे के खिलौने नुकीले नहीं होने चाहिए, नहीं तो वे बच्चे के मुंह में चुभकर उसे तकलीफ देंगे। इस समय साफ-सुथरी लकड़ी और रबर के बने खिलौने बच्चों के लिये सर्वश्रेष्ठ होते हैं। इन खिलौनों से बच्चों के दांत निकलते समय होने वाली परेशानियों से बच सकते हैं।

थोड़े और बड़े होते ही बच्चे ठुमक-ठुमककर चलने लगते हैं, जब उनके लिये वाकर या लकड़ी की तीन या चार पहिये वाली गाड़ी ला देना उत्तम रहता है। इससे बच्चों को चलते समय गिरकर चोट लगने से बचाया जा सकता है। इसी समय बच्चे को साफ्ट टॉयज भी दिये जा सकते हैं, जिससे बच्चा अपने आसपास की चीजों को अच्छी तरह से जान सके। साफ्ट टॉयज में शेर, भालू, चीता, खरगोश, बंदर के अलावा बच्चों को सबसे ज्यादा मिकी माउस पसंद आता है। आप इन खिलौनों के साथ-साथ यदि उनसे जुड़ी कहानियां भी बच्चों को सुनायेंगे तो आपका बच्चा और ज्यादा खुश होगा और उसकी आसपास की जानकारियां भी बढ़ती रहेंगी। एक से दो वर्ष की उम्र के बच्चे गेंद के अलावा आवाज करने वाले खिलौने भी बहुत पसंद करते हैं, जिसमें खिलौना फोन, चाबी और रिमोट से चलने वाले गुड्डïे-गुडिय़ा, कार, मोटर साइकिल और रोबोट भी शामिल हैं। यदि आपकी जेब इजाजत दे तो आप भी अपने बच्चों के लिए ऐसे महंगे खिलौने खरीद सकते हैं। यदि यह संभव न हो, तो आप खुद बच्चों के साथ बच्चे बन जाइये, उनके साथ उनके खेलों में शामिल हो जाइये तो बच्चे घर के कटोरी, चम्मच को ही अपना खिलौना बना लेंगे। वैसे आमतौर पर यह भी देखा जाता है कि जिन बच्चों के पास बहुत ज्यादा खिलौने होते हैं वे जल्दी ही अपने खिलौनों से ऊब जाते हैं और घरेलू सामान के साथ खेलने लगते हैं, जिनमें कटोरी, चम्मच, गिलास, चाकू से लेकर जूते-चप्पल तक सभी शामिल होते हैं। जब बच्चे ऐसी चीजों से खेल रहे हों, तो उन्हें रोके टोके नहीं बल्कि अपने सामने बैठाकर इन चीजों से इन्हें खिलायें। हां, चाकू और कैंची जैसा नुकीला सामान जरूर बच्चों की पहुंच से दूर रखें। थोड़े-बड़े होने पर बच्चों को इनकी उपयोगिता एवं नुकसान अवश्य बता दें ताकि वे आपकी अनुपस्थिति में कभी उनका उपयोग करें तो स्वयं का कोई नुकसान न कर बैठें।

जब बच्चे स्कूल जाने लगते हैं, तो उनका माहौल और जीवन सभी कुछ बदल जाते हैं। स्कूल में नये-नये दोस्त मिलते हैं, तो घर पर हर समय दुलार करने वाली मम्मी का साथ छूट जाता है। स्कूल में मिलती है कभी प्यार तो कभी गुस्सा करने वाली क्लास टीचर और हर समय नाक पर गुस्सा और हाथ में छड़ी रखे रहने वाली बड़ी मैडम। इस समय बच्चों के खिलौने भी बदलने लगते हैं और वे स्वयं अपनी पसंद व्यक्त करना भी सीख जाते हैं। इस समय बच्चों के खिलौने बच्चे और आप दोनों की मिली जुली पसंद का ध्यान रखकर खरीदे जाने चाहिये। यदि खिलौनों के रंग और डिजाइन बच्चों के पसंद की हो तो खिलौनों की उपयोगिता आपकी समझ पर निर्भर होना चाहिये। वैसे खिलौनों की शक्ल वाले स्कूल बैग, वाटर बॉटल, लंच बाक्स, पेंसिल, रबर आदि आप बच्चों की पसंद के दिलवा सकते हैं पर बच्चों के मानसिक विकास करने वाले ब्लाक्स के खेल, चार्ट, ड्राइंग मटेरियल वाले ऐसे खेल, जिनसे बच्चों को रंग और अक्षर पहचानने में मदद मिलती है आपको अपनी पसंद से लेना चाहिए।

बढ़ते बच्चों के लिए आजकल अनेक प्रकार के खिलौने प्रचलन में हैं। पिस्तौल, रायफल, दूरबीन, महंगी-महंगी गुडिय़ा से लेकर ऐसे इलेक्ट्रानिक चार्ट जो बच्चों को न केवल अक्षरों की जानकारी देते हैं बल्कि अपने आसपास की वस्तुओं जैसे कुर्सी, मेज, जग, टीवी, फ्रिज, कार, स्कूटर की पहचान सिखाने में भी मदद करते हैं। वैसे कहा जाता है कि बच्चों का मन बड़ा कोमल होता है और इसे बनाये रखने के लिए उन्हें हिंसात्मक खिलौनों से दूर रखना चाहिये पर आज के समय में यह मुश्किल जरूर है।

स्कूल जाने वाले बच्चों के लिये केवल इनडोर गेम्स ही नहीं बल्कि आउटडोर गेम्स भी जरूरी है। ये बच्चों के उचित शारीरिक एवं मानसिक विकास के लिये भी आवश्यक है। गेंद से तो बच्चा बिल्कुल बचपन से ही खेलता है। इस उम्र में आप उसे फुटबॉल और बास्केटबॉल भी दिला सकते हैं, फिर बच्चे की रुचि के अनुरूप टेनिस या बैडमिन्टन के रैकेट्स, साइकिल, स्केट्स भी दिलाये जा सकते हैं।

सात-आठ साल के बच्चों को उनकी रुचि के अनुरूप स्वीमिंग और घुड़सवारी जैसे खेलों की ओर भी प्रेरित किया जा सकता है। इसी उम्र में बच्चों को कलात्मक गतिविधियों को भी खिलौनों के माध्यम से बढ़ावा दिया जा सकता है। जैसे यदि किसी बच्चे की चित्रकला में रुचि है, तो उसे इससे संबंधित ड्राइंगबुक, कलर पेंसिल आदि चीजें दी जा सकती हैं। यदि वह कोई वाद्य यंत्र बजाने की ओर प्रेरित है तो उसे बांसुरी या छोटी सी ढोलक भी दिलायी जा सकती है। इसी प्रकार यदि वह पढऩे का शौक विकसित कर रहा हो, तो आप आरंभ में उसे शिक्षाप्रद चित्रकथाओं वाली पुस्तकें लाकर दे सकते हैं। हो सकता है उसका यही गुण आगे चलकर उसे एक अच्छा लेखक भी बना दे।

कई बच्चों की आदत होती है अपने खिलौनों के पुर्जों को अलग-अलग कर देना। आपके बच्चों की भी ऐसी आदत है, तो उसे टोके या डांटे नहीं बल्कि खिलौना तोडऩे के बाद उसे पुन: पहले की तरह जोडऩे के लिये प्रेरित करें। सफल होने पर आप अपने लाड़ले या लाड़ली को कुछ उपहार भी दे सकते हैं। आरंभिक कुछ प्रयासों में असफलता के बाद आप देखेंगे कि आपका बच्चा उस खिलौने को जोडऩे में सफल हो जाता है। तब उसे इस कार्य के लिये शबाशी अवश्य दें। याद रखिये इस तरह से आपके बच्चों में एक नया गुण भी विकसित हो सकता है। वे उस खिलौने की तकनीक को समझकर स्वयं भी कुछ नया करने की दिशा में प्रेरित हो सकते हैं।

खिलौनों की आवश्यकता हर उम्र में होती है। बच्चे जहां खिलौनों से खेलते हैं वहीं बड़े अपने खेलने के लिये दूसरे विकल्प तलाश कर लेते हैं। ताश, कैरम और शतरंज तो अब बीते दिनों की बात हो गयी है, आजकल तो कम्प्यूटर गेम्स घर-घर में उपलब्ध है, जिनसे छोटे-छोटे बच्चों से लेकर दादा-दादी की उम्र तक के लोग अपना दिल बहलाते हैं। बच्चों के स्वस्थ एवं उत्तम मानसिक विकास के लिये खिलौनों का बहुत महत्व है। खिलौनों को बच्चों के विकास में सहभागी अवश्य बनायें, पर इतना ध्यान रखें कि अति हर चीज की बुरी होती है। ऐसा न हो कि आप लाड़-प्यार में बच्चों को खिलौनों पर इतना निर्भर बना दें कि उसे खिलौनों के अलावा दूसरी सभी चीजें नगण्य लगने लगे और वह जीवन का स्वाभाविक आनंद न ले सके।

 बच्चे को सही राह दिखाने की जिम्मेदारी आपकी है, आप बच्चों को स्वयं चुनकर ऐसे खिलौने दें जो आगे चलकर बच्चों में सभ्य और सुसंस्कृत सोच विकसित कर सके और यही बच्चे आगे चलकर देश के सुयोग्य और कर्मठ नागरिक बन सके। (विनायक फीचर्स)