होई ना ताका-ताकी - अनिरुद्ध कुमार

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चमकत दमकत सब राउर बा।

हमरो ओरी तनि झांकी।

हमरे दमपर रउआ बानी,

हम काहे धूरा फांकी?

              

जेजे कहनी सब हम कइनी,

साँचें बा नाहीं हाँकीं।

नाम दाम सब रउआ पइनी,

बोलीं कबले हम ताकीं?

            

कोड़खान हम अन उपजाईं,

फोड़-फोड़ बड़का चाकी।

लेवे बेरी रउआ मालिक।

देवे के बेरी काकी?

             

बदसे बदतर हाल हो गइल,

इज्जत हम तोपी ढ़ाकी।

उपरसे बेबात गरिआईं

बोलीं बा कूछो बाकी?

              

रउआ झारीं मँहगा कपड़ा,

हमराला बावे खाकी?

रउआ बइठ सोना बिटोरी,

हम काहे माटी घांकी?

              

आगा पाछा झंडा ढ़ोई,

दिनरात जाई थाकी।

भोजभात में रउआ चाभी,

हमत खड़े धूरा फांकी।

              

कबले बोलीं अईसे चली,

अब होई टोकाटाकी।

बहुत भइल अबहूँ से चेती,

होई ना ताका-ताकी।

- अनिरुद्ध कुमार सिंह, धनबाद, झारखंड