हिंदी ग़ज़ल (चित्रधारित)- विनोद निराश 

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दर्दे-दिल की ये इक कथा है,

वेदना मेरी ये इक व्यथा है।

मौन निमिष फितरत तेरी ,

ये देख जख्म खूब मथा है।

आँखे अश्कबार हुई रात भर,

वो न जाने मुहब्बत अथा है। 

भग्न हुआ जो उरअंतस मेरा,

बात मेरी बात नहीं तथा है ।

तेरी बेरुखी के बाद मैंने भी,

मन को देर तलक मथा है।

जब काम नहीं आयी युक्ति,

बेकार उमर भर की जथा है । 

तू पाषाण ह्रदय मैं मोम सा, 

निराश मन स्थिति यथा है।

- विनोद निराश, देहरादून