वो तो पागल है - सविता सिंह

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सुनसान सड़क पर

कलेजे से लगाए

नवजात शिशु को,

चली जा रही थी

बेखौफ निडर,

ममता की प्रतिमूर्ति

शिशु की मां थी।

रो नहीं रहा था,

पीयूष नहीं पी रहा था,

बस वह दौड़ पड़ी,

ढूंढने एक अस्पताल|

जो जगाये  बच्चे को,

वो स्तनपान करा सके।

मिला उसे अस्पताल

चिकित्सक को बताया,

बच्चे को लिटाया,

रुंधे  कंठ से बोली

पी  नहीं रहा है दूध

कैसे मिटे उसकी भूख।

तभी आवाज आयी,

अरे यह तो वही है

प्लेटफार्म वाली पागल,

सप्ताह भर पहले,

जना है एक बच्चा।

ये ही  इसकी

जवानी की कहानी

जाने किसकी है निशानी।

कैसे हो तुम?

पागल को भी नहीं बख्शा,

कैसे उसके गर्भ में,

आया एक बच्चा?

वह तो बच्चे की बचाने जान

दौड़ पड़ी उस सड़क

जो था वीरान और सुनसान।

बच्चे ने आंखें खोली

उसे सीने से लगाए

वह तो चल पड़ी

निस्वार्थ भाव से मुस्काए।

तुमने तो उसकी जान लूट ली,

और वो अपनी जान की

परवाह ना करते हुए

अपनी जान को बचाने

के लिए दौड़ पड़ी ।

नियति तो देखो वही पागल है।

जिसने बनाया पागल

वो स्वतंत्र, फब्तियां कस रहा।

वह तो पागल है

तय करो तुम क्या हो

तुम्हारी गिनती किस श्रेणी में हो।

- सविता सिंह मीरा, जमशेदपुर