हास्य दोहे - मधु शुक्ला

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सखी चाय तुम बिन कभी, प्रगट न होती भोर।

आँख खुले तो मन करे, चाय - चाय का शोर।।

रिश्ते  नातों  के  बिना, जीना  है  आसान।

तुम बिन मोबाइल मगर, निकले मेरी जान।।

तुम बिन प्यारी फेसबुक, मन रहता बैचैन।

तुम्हें  ढूँढते  ही  रहें, दृग  मेरे  दिन  रैन।।

तुम बिन देवी मेड जी, आये नहीं करार।

दर्शन देकर दीजिए, हमको आप दुलार।।

— मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश