हरि शरण - सुनील गुप्ता
( 1 ) " ह ", हरि बोल
हरि बोल ,
हरि-हरि बोल....,
श्रीराधे-राधे जय श्री गोपाल बोल !
चलें बोलते श्रीराधे सुबह-शाम.....,
भजते हृदयद्वार खुलें, मन जाए डोल !!
( 2 )" रि ", रिझाएं चलें
लड्डू गोपाल ,
सुनते बाँसुरिया....,
भए प्रेम में गोपियाँ पागल !
बरस रहा चहुँ ओर से श्रीधन....,
और नाचते चले है बाजे छम-छम पायल !!
( 3 )" श ", शरण लगें
आएं श्रीहरिद्वार,
लागी लगन ...,
प्रभु मूरत तन-मन सुहाए !
बसत हृदय मोर मुकुटधारी ...,
चलूँ श्रीहरिभजन सुनाता मन हर्षाए !!
(4)" र ", रमें रहें
श्रीचरणों में,
चलें झूमें ....,
नाचते करते श्रीहरि संकीर्तन !
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः ...,
प्रभु कर दिया आपको तन मन अर्पण !!
( 5 )" ण ", णमो नमो
वसुदेवसुतं देवं,
कंस चाणूर्मर्दनम् ....,
श्रीदेवकी परमानन्दं, कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् !
योगेशं सच्चिदानंद, वासुदेवं व्रजप्रियम् ..,
धर्मसंस्थापकं वीरं, श्रीकृष्णंवन्दे जगद्गुरुं !!
- सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान