आनंदित हो सबकी होली - अनिरुद्ध कुमार

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प्रेमातुर कण-कण हमजोली,

जड़ चेतन पहिरे नव चोली।

पुरवा पछिया करें ठिठोली,

मदमादित बोलें है होली।।

रंगरंजित मस्त हर टोली,

हाँथ हाँथ रंगो की झोली।

रसरंजित बोले मृदु बोली,

झूम नाच मिल गाते होली।

गली गली शोभित रंगोली,

लाल हरा रचके मुहबोली,

फागुन आयो मोहे बोली।

बुला रहीं आ खेलें होली।

रंगरेज की निकली टोली।

झाँक रहे सब खोली खोली।

जोगीरा हर मुख की बोली।

नवजीवन देती यह होली।

रंगरसिक की भरदे झोली

अनुरागी हो जीवन डोली।

मनभावन मनमोहे बोली।

आनंदित हो सबकी होली।

- अनिरुद्ध कुमार सिंह

धनबाद, झारखंड