हमराह - रश्मि मृदुलिका

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जब भी देखूं मुझसा लगता है,

मुझे तू मेरा आईना सा लगता है|

पढ़ रहा ग़ज़ल शायर जैसे कोई,

तरन्नुम में कोई मतला सा लगता है|

सुस्ता रही है यादें  भटक कर,

बंजारे का तू ठिकाना सा लगता है|

अहसास खुशनुमा है आज फिर,

सुबह का कोई तू सपना सा लगता है|

परायी दुनिया की कौन सोचे अब,

तन्हा मन को तू अपना सा लगता है|

- रश्मि मृदुलिका, देहरादून , उत्तराखंड