हमराह - रश्मि मृदुलिका
Mar 31, 2024, 23:49 IST
| जब भी देखूं मुझसा लगता है,
मुझे तू मेरा आईना सा लगता है|
पढ़ रहा ग़ज़ल शायर जैसे कोई,
तरन्नुम में कोई मतला सा लगता है|
सुस्ता रही है यादें भटक कर,
बंजारे का तू ठिकाना सा लगता है|
अहसास खुशनुमा है आज फिर,
सुबह का कोई तू सपना सा लगता है|
परायी दुनिया की कौन सोचे अब,
तन्हा मन को तू अपना सा लगता है|
- रश्मि मृदुलिका, देहरादून , उत्तराखंड