गुरु गोविंद सिंह और रामकथा - माधवदास ममतानी

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vivratidarpan.com - आमतौर पर लोगों को तुलसीकृत व वाल्मिकी रामायण की जानकारी है परंतु श्री गुरु गोबिंदसिंघ द्वारा रचित दसम ग्रंथ में भी श्रीराम अवतार का वर्णन है जिसकी जानकारी बहुत ही कम लोगों को है।

श्री गुरु गोबिंदसिंघजी श्री दसम ग्रंथ में कहते हैं कि यदि राम अवतार की पूरी कथा कहने लगूंगा तो एक और नया ग्रंथ बन जाएगा। गुरुजी ने दसम ग्रंथ में श्री राम कथा काव्य रुप में की है। श्री गुरु गोबिंदसिंघजी ने श्री रामजी को योगियों में परमयोगी, देवों में महादेव, राजाओं में सम्राट संतों में परमसंत और सर्व व्याधियों का नाश करने वाला, महान रुपवान बताया है। श्री राम का चेहरा खिले गुलाब के समान है, वे पूरे संसार के सौंदर्य हैं व उनके चेहरे की सौम्यता विशिष्ट और बुद्धि चातुर्यता से पूर्ण है। वे योद्धाओं के लिए परमयोद्धा,शस्त्रधारियों के लिए महाशस्त्रधारी, मुक्तिदाता, कल्याणकारी, सिद्ध स्वरुप, बुद्धिप्रदाता और ऋद्धियों-सिद्धियों के भंडार हैं। जिसने श्रीराम को जिस भावना से देखा उसने उसी स्वरुप में उनके दर्शन किए।

श्री दसम ग्रंथ में गुरुजी श्रीराम की महिमा करते हुए बताते हैं कि उनकी कीर्ति चारों दिशाओं में फैली हुई है, जिन्होंने दस हजार वर्षों तक राज्य किया, देश-देशांतरों के राजाओं को जीता व त्रिलोक ने उन्हें महा विजेता के रुप में जाना। रघुनंदन के नाम से पहचाने जाने वाले श्रीरामजी जगतपति और मुनिगणों के वंदनीय हैं।

जिन्होंने सारी धरती के लोगों को सुखी कर उनके दुख दूर किए,वे राम प्रभु हैं, अनंत हैं,अजेय हैं और अभय हैं। वे प्रकृति के स्वामी हैं, पुरुष हैं, समस्त जगत हैं,परब्रह्म हैं और त्रेता युग में पारब्रह्म परमेश्वर के सगुण अवतार हैं और गुरु अरजनदेवजी फरमाते हैं कि निरगुनु आप सरगुनु भी ओही।। कला धारि जिनि सगली मोही।। अपने चरित प्रभि आपि बनाए।। अपुनी कीमति आपे पाए।।

    श्री गुरु गोबिंदसिंघजी की यह प्रबल इच्छा है कि भक्तगण दसम ग्रंथ में वर्णित रामकथा को अवश्य सुनें व गाएं इसलिए गुरुजी ने इस रामकथा को वर दिया है कि.

जो इह कथा सुनै अरु गावै।। दूख पाप तिह निकटि न आवे ।।

बिसन भगत कीए फल होई।। आधि बयाधि छवै सकै न कोई ।।

अर्थात जो दसम ग्रंथ में वर्णित राम कथा को सुनेगा व गायेगा, दुख और पाप उसके निकट नहीं आयेगें व उसे किसी प्रकार की बीमारी एवं जंतर-मंतर छू नहीं सकेंगें तथा उसे वैष्णव भक्ति की प्राप्ति होगी। साथ ही उन्होंने यह भी कहा है कि राम कथा जुग-जुग अटल, सभ कोई भाखत नेत अर्थात नित्य कही जानेवाली राम की कथा युगों-युगों तक अमर रहेगी।

श्री गुरु ग्रंथ साहिब श्री राम नाम की महिमा से भरा हुआ है तथा गुरुघर के वेद व्यास भाई गुरदासजी अपनी वार में लिखते हैं कि श्री रामचंद्र जी का नाम लेने से जीव तीन हत्याओं के पाप से मुक्ति पाता है। रामचंदु नाउ लैंदिआँ,तिंनि हतिआ ते होइ निहाले ।। (वार 23 वीं, पउड़ी 8 वी)

गुरबाणी भी फरमाती है कि सतजुगि तै माणिओ छलिओ बलि बावन भाइओ।। त्रेतै तै माणिओ रामु रघुवंस कहाइओ।। दुआपुरि क्रिसन मुरारि कंसु किरतारथु कीओ।। उग्रसैण कउ राजु अभै भगतह जन दीओ।। कलिजुगि प्रमाणु नानक गुरू अंगदु अमरू कहाइओ।। स्री गुरु राजु अबिचलु अटलु आदि पुरखि फुरमाइओ ।। (गुरू ग्रंथ साहिब अंग 1390) अर्थात परमात्मा सगुण रूप में सतजुग में वामन अवतार, त्रेता में रघुवंशी राम, द्वापर में श्रीकृष्ण एवं कलजुग में क्रमश: श्री गुरू नानकदेव, गुरू अंगददेव, गुरू अमरदास के रूप में अवतरित हुए हैं।

  श्री दसम ग्रंथ में पृष्ठ 47 से 54 में श्री गुरु गोबिंदसिंघजी ने स्वयं और श्री गुरु नानक देवजी को श्री रामचंद्रजी का वंशज अर्थात लव और कुश की संतान बताया है। (विनायक फीचर्स)