गुंजित हमारा गणतंत्र - हरी राम यादव

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तंत्र हमारे तन्मयता से सुनें,

गण के मन की आवाज।

तभी हमारा गणतंत्र रहेगा,

दीर्घ काल तक जिंदाबाद।

दीर्घ काल तक जिंदाबाद,

जननाद को न जाए दबाया।

सबको सबका अधिकार मिले,

जन से न कुछ जाए छिपाया।

शिक्षा और चिकित्सा सबकी,

सरकारों की हो जिम्मेदारी।

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर,

न हो कोई सरकारी पहरेदारी।।

संविधान जन का ज्ञान बने,

कोई इसका न करे उलंघन।

निज स्वार्थ के वशीभूत हो,

न हो कोई इसमें परिवर्तन।

न हो कोई इसमें परिवर्तन,

जब तक हो न बहुत जरूरी।

मन का अपना मनोभाव त्याग,

करें सभी प्रस्तावना को पूरी।

सबका सबसे बड़ा धर्म यह,

न किसी की हो इससे दूरी ।

पचहत्तरवां गणतंत्र हमारा,

न रह जाए कोई मजबूरी।।

- हरी राम यादव, अयोध्या , उत्तर प्रदेश