ग़ज़ल - विनोद निराश
Sep 2, 2023, 22:26 IST
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याद जब आती है यादें, कुछ भी कहने नहीं देती,
मुसलसल साथ रहती है तन्हा रहने नहीं देती।
याद करते - करते हो जाती है आँखे अश्के-बार,
पलके संभालती आँसूं आँख से बहने नहीं देती।
जख्मे-दर्द-ए-दिल जब कभी हद से बढ़ जाता है,
यादें तुम्हारी दर्दे-दिल कुछ भी कहने नहीं देती।
पलक झपकी बह गए जागती आँखों से ख्वाब,
मगर यादें तेरी वो ख्वाबे-मंज़र ढ़हने नहीं देती।
तुमसे अलैहदा होंगे बेशक तन्हा हो गया निराश,
पर चाहत तेरी हाथ गैर का कभी गहने नहीं देती।
- विनोद निराश, देहरादून