ग़ज़ल - विनोद निराश
Apr 24, 2023, 21:28 IST
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खुद से समझौता करने लगे,
कुछ यूं ही गुजर करने लगे।
मांगी थी ख़ुशी पर गम मिले,
जाने क्यूँ रिश्ते बिखरने लगे।
आरज़ू थी फकत आपकी पर ,
हुए जो तन्हा आहें भरने लगे।
जब से हुए हमनवां रकीब के,
तब से रोज़ खूब सँवरने लगे,
देख कर बेरुखी उनकी निराश,
जीने की चाह लिए मरने लगे।
- विनोद निराश , देहरादून