ग़ज़ल - विनोद निराश

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मैं तुझे भूल जाऊँ ऐसा खुदा न करे,

ये अलग बात है तू कभी वफ़ा न करे।

बेशक न हो गुंजाइश मुलाक़ात की पर,

तेरी ये बेरुखी कभी हमें जुदा न करे।

जो मुहब्बत पर बोझ बन जाए कभी,

मुलाकात हमसे ऐसी मेहरबां न करे। 

बहुत कुछ खो दिया हमने वास्ते तेरे,

अब और मुझको तू यूँ छला न करे।

मुददत से हूँ सजायाफ्ता सा मगर,

अब तो मेरे लिए कोई जफ़ा न करे।

अब जीने की ख्वाहिश किसे निराश,

खुदा करे वो मेरे हक़ में दुआ न करे।

- विनोद निराश, देहरादून