ग़ज़ल - शिप्रा सैनी

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खिल उठें है फूल शिउली शरद के पदचाप से,

कर सुगंधित इस हवा को वह झड़े चुपचाप से।

धुंध का पट ओढ़ सकुचाती हुई आती  प्रभा,

खग, विहग,जन हैं मगन अब  निम्न होते ताप से।

दूर तक फैली हुई है  देखो धानी चादरें,

निज खुशी दर्शाये हलधर ढोलकों की थाप से।

पर्व त्योहारों का मौसम चँहु दिशा रौनक दिखे,

हो रही गुंजित दिशायें माँ- भजन और जाप से।

फूल ढेरों लाल-पीले मुस्कुराते बाग में,

ओ शरद  सुंदर सलोने प्यार मुझको आप से।

️शिप्रा सैनी मौर्या, जमशेदपुर