ग़ज़ल - सम्पदा ठाकुर

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कभी खुशियों का कोई नजारा नहीं,

यहां भटकते  रहोगे  किनारा  नहीं ।

बात  एक  गौर  से  सुन लो  सभी ,

कोई  गलियों  में अब  सहारा नहीं ।

थी चाहत  एक  ऐसी जो चाह  रहा ,

यहां आंखों का मतलब इशारा नहीं ।

भरोसा है क्या तुम कहीं छोड़ जाओ ,

मैं  बहती  जो जाऊं वो  धारा  नहीं ।

जिंदगी में भरोसा का मतलब है यार,

हमें तुम  छोड़  दो  यह  गवारा  नहीं ।

ज़मी और फ़लक उसके  काबू में है ,

हमें  कर  दे  जो  रुसवा उतारा नहीं ।

दोस्तों मैं ये कहती सुनो आप सभी ,

जो  हमारा  नहीं  वो  तुम्हारा  नहीं ।

- सम्पदा ठाकुर, मुंगेर, बिहार