गजल - ऋतु  गुलाटी

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अभी यार हमको सम्भलने तो दो,

हुआ  साथ  मेरे  पिघलने  तो दो।

लिखी आज तुमने भली शायरी,

लिखा क्या अजी यार पढने तो दो।

बुरा वक्त कहकर नही आ रहा,

बुरे वक्त को आज ढलने तो दो।

सुधारो कि रिश्तों को खोना नही,

अजी गैर को तुम भी बकने तो दो।

अभी इश्क मे हम भी उतरे कहाँ,

नया इश्क मेरा भी बढने तो दो।

घटा छा गयी नभ मे देखो अजी,

छुपे बादलो को बरसने तो दो।

फिजा में खिला है पलाश कुसुम,

खिली लाल रंगत को बढने तो दो।

सदा साथ तेरे रहूँ  मैं पिया,

कही वक्त को भी ठहरने तो दो।

नही मानता दिल जमाने कि *ऋतु,

मचलता है दिल अब मचलने तो दो।

- ऋतु  गुलाटी  ऋतंभरा, चण्डीगढ़