गजल - ऋतु गुलाटी
Sun, 21 May 2023
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तुम्हे पाने की हसरत थी मगर हमको मिला क्या है,
सताता है जमाना भी बता तेरी सजा क्या है।
हुआ गर आज तू मुझसे खफा होकर न जी पाऊँ,
लगा लूँ मौत को अपने गले से फैसला क्या है।
लुटाया प्यार तुम पर था बढे हद से तुम्ही ज्यादा,
जिहालत को नही समझे हुआ अब हादसा क्या है।
जमीं पर तुम टिके रहना, हवा मे बात मत करना,
खुदा बंदे से खुद पूछे बता तेरी रजा क्या है।
सुकूँ पाने अजी निकले, रहे बेकार से लेकिन,
वफा करते रहे तुमसे, सिला आखिर दिया क्या है।
- ऋतु गुलाटी ऋतंभरा, चण्डीगढ़