ग़ज़ल - ऋतु गुलाटी

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साथ तेरा अब वफा भी खो गया,
था भरोसा आसरा भी खो गया।

यार तेरा दर्द हमको क्यो मिला?
क्या गुनाह था हमनवा भी खो गया।

आज रिश्ता टूटता उसका मेरा,
दर्द दे भूला दवा भी खो गया।

हाय हमसें दूर अब वो क्यो गया,
अक्स खोया,आईना भी खो गया। 

रसभरी बातें भी तुमने खूब की,
प्यार तेरा अब खरा भी खो गया।

प्यार को अब ऋतु खुदा सा मानती,
अब मिलन का सिलसिला भी खो गया।
 - ऋतु गुलाटी ऋतंभरा, मोहाली, पंजाब