ग़ज़ल - ऋतु गुलाटी
Tue, 7 Mar 2023
| 
घूँघट में दुल्हन भी लजाने लगती है।
भीड़ सें दुल्हन नजर बचाने लगती है।
छा जाती है खुमारी अजी आँखो में।
नार तब लब से गुनगुनाने लगती है।
करते हैं तारीफें सनम हमारे जी।
नजर हमारी भी इतराने लगती है।
भूल गयी हूँ मैं अब खाना पीना भी।
जब जब तेरी याद सताने लगती है।
होता क्या है अब दिल मे सुन लो *ऋतु की।
खुश होती अजी मुस्कुराने लगती है।
- ऋतु गुलाटी ऋतंभरा, मोहाली, चंडीगढ़