ग़ज़ल - ऋतु गुलाटी
Sun, 5 Mar 2023
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लगे हमें यार बंदगी है,
बिना तुम्हारे न जिंदगी है।
दवा कभी दर्द बाँटती हैं,
हिज्र की रातें ही काटती हैं।
किसी की आँखो मे आज हमको,
जगी मुहब्बत भी देखनी है।
खुली हैं बातें जो सुनी न अब तक,
ये जिंदगी को उजाड़ती है।
विरह तुम्हारा न सह ही पाये,
लगे हमारी ये आशिकी है।
जगा दी चाहत गुलाब सी अब,
ये दिल की दुनियाँ संवारनी है।
- ऋतु गुलाटी ऋतंभरा, मोहाली, चंडीगढ़