ग़ज़ल - ऋतु गुलाटी

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लगे  हमें यार बंदगी है,

बिना तुम्हारे न जिंदगी है।

दवा  कभी दर्द बाँटती हैं,

हिज्र की रातें ही काटती हैं।

किसी की आँखो मे आज हमको,

जगी मुहब्बत भी देखनी है।

खुली हैं बातें जो सुनी न अब तक,

ये जिंदगी को उजाड़ती है।

विरह तुम्हारा न सह ही पाये,

लगे  हमारी ये आशिकी है।

जगा दी चाहत गुलाब सी अब,

ये दिल की दुनियाँ संवारनी है।

- ऋतु गुलाटी ऋतंभरा, मोहाली, चंडीगढ़