ग़ज़ल - रीता गुलाटी

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आँसमा को आज छूती चाँद पहुँची बेटियाँ।

हौसला लेकर चली,पाने लगी हैं, तालियाँ।

आज दिखती रौनकें भी,सज रही है वादियाँ।

हो गयी केसर की खेती, हट रही पाबंधियाँ।

हम खड़े हैं दर तुम्हारे, आज लेके अर्जियां।

दर्श हमको दे दो बाबा, भूल कर सब गलतियां।

दर्द हमको दे रहा था,चीरता सीना मेरा।

हद से ज्यादा अब लगी है उसकी ये गुस्ताखियाँ।

हाय कैसे अब सहूँगी, जो दिये थे,रंजोगम।

बेबसी की सिसकियों में गूँजती सी चुप्पियाँ।

मर रहे हैं भूख से,फैली हुई है भुखमरी।

भूख से बस तड़फती बेहाल सी है बस्तियां।

- रीता गुलाटी ऋतंभरा, चण्डीगढ़