ग़ज़ल - रीता गुलाटी
Sep 5, 2024, 00:03 IST
| है बना दुश्मन जमाना, यार तू सताना छोड़ दे.
तू कहे तो आज से दिल खिलखिलाना छोड़ दे।
हो गये वीरान जग से घौसले भी अब बड़े.
ढूंढते फिरते बसेरा आब ओ दाना छोड़ दे।
जी रहे थे हादसो की जद पे गुनगुनाना छोड़ दे.
जलजलो के खौफ से क्या घर बनाना छोड़ दे।
हो रहा मस्ती मे पीकर जाम उल्फत का बड़ा,
सोचता दिल आज गम का घर बनाना छोड़ दे।
सह रहा था वो अजीयत दूर होकर आशना,
डूबता दिल क्यो गमो मे मुस्कुराना छोड़ दे।
- रीता गुलाटी ऋतंभरा, चण्डीगढ़