ग़ज़ल - रीता गुलाटी

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सितमगर दर्द ही तकरार मे ले आती है,

दुख जो देता हमे इंकार मे ले आती है।

दर्द सहती है वो हरहाल मे दुख को सहती,

माँ भी क्या सोच के संसार मे ले आती है।

यार सोचे हुऐ जज्बात उठाने आये,

चाह तेरी हमें परिवार में ले आती है।

प्यार देता है सुकूँ आज हँसा देता भी,

यार तेरी ये हँसी प्यार मे ले आती है।

खूबसूरत सा बना ख्याब मेरे दिलबर का,

जीस्त तेरी मुझे मझधार मे ले आती है।

- रीता गुलाटी ऋतंभरा, चण्डीगढ़