ग़ज़ल - रीता गुलाटी

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प्रेम आँखो से तो बरसाने में है,

हर दुआ मिलती तो अंजाने में है।

प्यार देती माँ बड़ा हमको भी है,

आज दिखती माँ तो वीराने में है।

भूख चाहे ना लगी हो आपको,

माँ के हाथों की महक खाने में है।

माँ बिना तो जिंदगी खिलती कहाँ?

अब लगे खुशियाँ भी सिरहाने में है।

क्यो मुझे भाने लगे तुम बेवजह,

कुछ कशिश लगती तो दीवाने मे है।

गम को साथी भूल आगे तुम बढो,

जिंदगी तो यार महकाने मे है।

अब सजी है ये धरा भी रूपसी *ऋतु,

खिल गये गुल आज वीराने मे है।

- रीता गुलाटी ऋतंभरा, चण्डीगढ़