ग़ज़ल - रीता गुलाटी

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सताते लोग जब हमको,शरण तेरी मे जाते हैं,

सुनाने दर्द अब अपना, तेरे मंदिर मे आते हैं।

हुए  पैदा मेरे श्रीराम, दिन नवमी तिथि का था,

करे संहार दुष्टो का, तभी भगवान आते हैं।

सजा मंदिर है दीपो से लगी रौनक भी मंदिर में,

चले मंदिर लला को अब फूलों से हम सजाते हैं।

जो पूजेगा उन्हें दिल से,बनेगे काम भी उनके,

हजारों भक्त है जपते, जो गंगा मे नहाते हैं।

छुपे हैं अब्र अब नभ मे,गमो के लग घनेरे भी,

सम्भालो प्रभु मुझे आकर,बडा दिल से बुलाते है।

- रीता गुलाटी ऋतंभरा, चंडीगढ़