ग़ज़ल - रीता गुलाटी

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कुछ राज है दिल मे छुपे शायद तुम्हें भातें नही,

बेजार सा क्यो अब दिखे यारा कभी आतें नही।

माना जमाने ने तुम्हें बातें भी सिखलायी सनम,

जीना पढेगा संग भी हमको तो बतलातें नही।

टूटें न दोस्ती तेरी यारा कभी मुझसे भले,

देखो किसी के कहने मे करना कभी घातें नही।

मेरी खुशी तो आप है रहना सदा मेरे तुम्ही,

लड़ना नही भूले से भी बीते भले रातें नही।

पाया है तेरा संग तो लगता मुझे बसन्त है ऋतु,

तुम बिन जियें कैसे भला तुमको भुला पातें नही।

- रीता गुलाटी ऋतंभरा, चण्डीगढ़