गजल - रीता गुलाटी

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प्यार तू भी लुटाती रही किस लिए,

दूर होकर करे बंदगी किस लिए।

दिल परेशा हुआ हम बड़ा रो दिये,

फिर भी चाहत मे है खलबली किस लिए।

चाह आँखो में दिखती भली किस लिए,

कुछ तडफ भी मचलती रही किस लिए।,

तुम छुपाते रहे बात दिलदार से,

फिर भला क्यो करो शायरी किस लिए।

क्यो शिकायत रही यार तुमसे हमें,

क्यो जताते रहे तुम कमी किसलिए।

प्यार की जिन्दगी से न दौलत बड़ी,

छोड़ महलो को भाती खुशी किसलिए।

आज आँखो से आँसू नही अब रूके,

रात पूनम की ठलती रही किसलिए।

- रीता गुलाटी ऋतंभरा, चंडीगढ़