ग़ज़ल - रीता गुलाटी

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मिलकर रहो खुशी तो है,

हँसना ही जिंदगी तो है।

तू भूल जा ये मुफलिसी,

आँखो मे क्यो नमी तो है।

दीपक जरा तू आ जला,

थोड़ी सी रोशनी तो हो।

रोना नही कभी फकत,

दोस्ती भी अब बड़ी तो हो।

आओ चले खुदा के घर,

कर बंदगी खरी तो हो।

- रीता गुलाटी ऋतंभरा, चण्डीगढ़