ग़ज़ल - रीता गुलाटी
Sep 30, 2023, 23:05 IST
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जहाँ सोच भारी पड़ेगी,
मुश्किल निभानी पड़ेगी।
निभाने का वादा किया था,
इसीलिए निभानी पड़ेगी।
शिकायत थी मुझसे बताते,
दिलो की बतानी पड़ेगी।
मुहब्बत अगरकी ही मुझसे,
वफा भी निभानी पड़ेगी।
न ठुकरा ये अब इश्क मेरा,
ये कीमत चुकानी पड़ेगी।
जिये जा रही थी शहर मे,
ये डोली उठानी पड़ेगी।
रहो संग मेरे सदा तुम,
मुहब्बत निभानी पड़ेगी। ,
ये दूरी बनानी है हमको,
नजर अब छुपानी पड़ेगी।
- रीता गुलाटी ऋतंभरा, चंडीगढ़