ग़ज़ल - रीता गुलाटी
Sep 27, 2023, 23:34 IST
| चाहतों को तू बुलबुला न समझ,
प्यार मेरे को अब कटा न समझ।
खुद को यार तू ए खुदा न समझ,
दूर हो जा भले जुदा न समझ ।
यार अब आप क्यो सताते हो,
दिल मेरा भी बड़ा दुखा न समझ।
अश्क मेरे सदा ही बहते हैं,
दूर होकर हुई जुदा न समझ।
दर्द देती जमाने की रस्में,
हाय मुझको तू बेवफा न समझ।
मुख्तलिफ गम को हम छिपाते हैं,
टूटती प्यार मे जफा न समझ।
सात जन्मों का तुमसे नाता है,
गैर मुझको कभी मिला न समझ।
प्यार तुमसे भले ही करते हैं,
इसको चाहत का सिलसिला न समझ।
- रीता गुलाटी ऋतंभरा, चंडीगढ़