ग़ज़ल - निधि गुप्ता

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ज़माने की निगाहों में, वो आने से हिचकती है,

ग़म-ए-हालात महफ़िल में, बताने से हिचकती है।

हज़ारों पीढ़ियों की रंजिशों का है असर शायद,

नई पीढ़ी, नए रिश्ते बनाने से हिचकती है।

बड़े मशहूर इक किरदार थे, हम जिस कहानी के,

वही क़िस्सा तेरी दुनिया, सुनाने से हिचकती है।

लगी है किसके ख़्वाबों की नज़र, मुझको के अब देखो

तुम्हारी याद भी आँखों में, आने से हिचकती है।

वही जो साथ में मिलकर, कभी हमने जलाया था

'कशिश' अब वो चराग़-ए-दिल, बुझाने से हिचकती है ।

- निधि गुप्ता 'कशिश',  पुणे, महाराष्ट्र