गजल - मधु शुक्ला

 | 
pic

दिख रहा इंसान खुश लेकिन हकीकत और है,

शान धन से किन्तु अपनापन मोहब्बत और है।

आदमी को भा रही है आज पश्चिम की दिशा,

गैर के अति दीर्घ घर से प्रेम की छत और है।

भ्रष्टता का भक्त जग में हो गया हर आदमी,

भूल कर यह बात ऊपर इक अदालत और है ।

ईश की आराधना सम्बल हृदय को दे रही,

काटना जीवन अलग है ईश रहमत और है।

व्यक्ति हर संतान की चाहे भलाई सर्वदा,मगर

डांटना फटकारना शुभ है अदावत और है।

 — मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश