गजल - मधु शुक्ला

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मित्रता  लेखनी  से निभाते रहे,

आँसुओं को हँसी में छुपाते रहे।

शायरों  से  जमाना  रहा  है खफा,

जान कर यह हकीकत भुलाते रहे।

जान थे जो गजल की हमारी वही,

सुर्ख  कागज  हवा  में उड़ाते रहे।

जो  हमें  कल्पनायें  सुनातीं  रहीं,

हम  वही  आइने  को सुनाते रहे।

सांस आये न 'मधु' शायरी के बिना,

जिंदगी  हेतु  लिखते  लिखाते  रहे।

 — मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश