गजल - मधु शुक्ला
Dec 20, 2023, 23:29 IST
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सत्य जब चितचोर है मैं गजल कैसे कहूँ,
चापलूसी घोर है मैं गजल कैसे कहूँ।
छंद लय की साधना अब न जन स्वीकारते,
मुक्त पद का शोर है मैं गजल कैसे कहूँ।
रस प्रखरता त्यागकर क्लिष्टता से खेलना,
शौक यह चहुँ ओर है मैं गजल कैसे कहूँ।
नाम धन की चाह ने छवि कलम की छीन ली,
रो रहा मन मोर है मैं गजल कैसे कहूँ।
जन्मती कविता जहाँ उस जगह जीवन न 'मधु' ,
हाथ में इक छोर है मैं गजल कैसे कहूँ।
---- मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश