गजल - मधु शुक्ला

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जाहिर न की मुहब्बत मुकरते चले गए,

आँसू करे बगावत उभरते चले गए।

करते न शोर इंसा भलाई करें अगर,

उपकार कर जहन में उतरते चले गए।

होता न यदि भरोसा धड़कता न दिल कभी,

सच झूठ के भँवर से उबरते चले गए।

दिल दे अगर गवाही उसे टालना नहीं,

हम बात मान दिल की सुधरते चले गए।

'मधु' प्रेम जिंदगी में दुवारा न लौटता,

हर भूल मीत की हम बिसरते चले गए।

 — मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश