गजल - मधु शुक्ला

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जिंदगी का  हर  प्रहर अच्छा लगा,

प्राप्त अनुभव का हुनर अच्छा लगा।

व्यर्थ है चाहत अमर संबंध की,

मुस्कराहट का असर अच्छा लगा।

राह में मिलना बिछड़ना रीत है,

इसलिए ही एक घर अच्छा लगा।

खोज उत्तम की किया हर वक्त दिल,

चैन पाया मन उधर अच्छा लगा।

जिस जगह 'मधु' प्रेम की दौलत मिली,

आशिकों को वह नगर अच्छा लगा।

— मधु शुक्ला, सतना , मध्यप्रदेश