गजल - मधु शुक्ला

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खास खुद को तू समझना छोड़ दे,

ख्वाब अपनों के मसलना छोड़ दे।

मीत मिलता भाग्य हो बलवान जब,

बेवजह हर पल अकड़ना छोड़ दे।

शायरी की जान होती है बहर,

इसलिए लय से भटकना छोड़ दे।

दूर अवगुण कर रहा सच को दिखा,

आइना हर पल बदलना छोड़ दे ।

चाहते  हैं  जो  भलाई  आपकी,

अब उन्हें 'मधु' तू परखना छोड़ दे।

-  मधु शुक्ला, सतना , मध्यप्रदेश