ग़ज़ल - ज्योति अरुण

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याद धड़कन ने उन्हें मेरी दिलाया होगा,

अश्क़ आंखों का सभी से वो छुपाया होगा।

करके एहसास मुहोब्बत का जहां के डर से,

प्रेम का ख़्वाब पलक पे वो सजाया होगा।

छोड़कर जाते हुए वो भी पिता के घर को,

लाडली अश्क को आंखों से बहाया होगा।

यें मुहोब्बत में तड़प प्यार की सूनो हमदम,

सामने तुम हो ये नजारा भी तो आया होगा।

गुनगुनाती जो सुबह ओस की बूंदों को लिए,

"ज्योति" सुंदर सा नजारा भी तो छाया होगा।

- ज्योति अरुण श्रीवास्तव, नोएडा, उत्तर प्रदेश