ग़ज़ल - जसवीर सिंह हलधर
Nov 24, 2024, 22:49 IST
| नुक़सान ही नुक़सान है कोई नफ़ा नहीं ।
दिल को चुराने के लिए कोई सज़ा नहीं ।
गलती हुई थी एक इश्क हो गया मुझे,
ख़ाना ख़राब हूं मगर उनसे ख़फ़ा नहीं ।
मुल्हिद शराब पी गया मस्ज़िद में बैठकर ,
पूछा तो बोलने लगा कोई खुदा नहीं ।
मंदिर में एक सिरफिरा देने लगा दलील ,
पत्थर कभी कोई दुआ करता अता नहीं ।
साकी तेरी निगाह ने आबाद कर दिया ,
अब कोई शराबी कहे मुझको गिला नहीं ।
वादा खिलाफ़ी का उसे भी ख़ूब तजुर्बा ,
मगरूर है थोड़ा मगर वो बेवफ़ा नहीं ।
जो कौम अपने आपको रखती है संगठित ,
ऐसी किसी भी कौम पर होती जफ़ा नहीं ।
लाखों करोड़ खा गए नदियों के नाम पर,
सरकार से अब भी हुईं नदियां सफ़ा नहीं ।
फांसी लगे चौराहे पे वहशत के जुर्म पर,
"हलधर " किसी कानून में ऐसी दफ़ा नहीं ।
- जसवीर सिंह हलधर , देहरादून