ग़ज़ल - विनोद निराश
Apr 13, 2024, 22:06 IST
| दुनिया भी बड़ी सयानी है
बात ये सबकी जुबानी है।
जिस बात पे था अहंकार ,
रूखसत हुई वो जवानी है।
ज़िंदगी बड़ी अजीब जनाब,
ख़ुशी - गम की कहानी है।
अहले-वफ़ा अब न मिलेंगे,
नक़्शे-पाँ उनकी निशानी है।
कल तक जो बहुत खुश थी,
आज उस आँख में पानी है।
जख्म खाकर भी लिखता हूँ,
ये हाले-दिल की बयानी है।
दौरे-इश्क़, हाले-रुत न पूछ,
जख्मे-दिल की ये निशानी है।
खुद को बचाते कैसे निराश,
जब निगाहें-यार तूफानी है।
- विनोद निराश , देहरादून
रूखसत - विदा
अहले-वफ़ा - प्रेम करने वाले
नक़्शे-पाँ - पद चिह्न / पैरों के निशान
हाले-दिल - ह्रदय की दशा
दौरे-इश्क़ - प्रेम काल / प्रेम का दौर
हाले-रुत - मौसम का हाल
निगाहें-यार - प्रेयसी के नयन