ग़ज़ल हिंदी- जसवीर सिंह हलधर
Jul 3, 2023, 22:53 IST
| नहीं है आज सिर पै ताज पर कल तो हमारा है,
चलें देखें समंदर का कहां दूजा किनारा है ।
सजी मंदिर कि मूरत बोल सकती है अगर चाहो ,
लगे उसको किसी ने आज अंदर से पुकारा है ।
नुकीली धार पानी की जमा पर्वत हिला देती ,
यकीं ना हो तो देखो गंग को किसने उतारा है ।
जरा सी चोट लगती है कलेजा मात का हिलता ,
खुदाई जोड़ ममता का अनौखा ही पिटारा है ।
कभी सोचा नहीं हमने पिताजी छोड़ जाएंगे ,
शजर हांथों लगाया जो वही अब तो सहारा है ।
गिने क्या पैर के छाले कभी अपने बज़ुर्गों के ,
जलाकर हाथ अपने आग में हमको सँवारा है ।
लपट आने लगी आतंक की बहती हवाओं में ,
लिए पत्थर खड़ा जो सामने किसका दुलारा है ।
अदीबों में हुई हलचल गजल लिखने लगा "हलधर",
कलम में ओज करुणा का अनोखा ही नजारा है ।।
- जसवीर सिंह हलधर , देहरादून