ग़ज़ल हिंदी - जसवीर सिंह हलधर
May 30, 2023, 22:03 IST
| नहीं है आज सिर पे ताज पर कल तो हमारा है ।
चलें देखें समंदर का कहां दूजा किनारा है ।
सजी मंदिर की मूरत बोल सकती है अगर चाहो ,
लगे उसको किसी ने आज अंदर से पुकारा है ।
नुकीली धार पानी की जमा पर्वत हिला देती ,
सभी नदियों ने अपना रास्ता खुद ही निखारा है ।
जरा सी चोट लगती है कलेजा मात का हिलता ,
खुदा ने रूप अपना नाम माँ देकर उतारा है ।
कभी सोचा नहीं हमने पिताजी छोड़ जाएंगे ,
लगाया बाग हांथों से वही अब तो सहारा है ।
गिने क्या पैर के छाले कभी अपने बज़ुर्गों के ,
जलाकर हाथ अपने आग में हमको सँवारा है ।
लपट आने लगी है रोग की पिछली सदी जैसी ,
किसी ने खो दिया बापू कहीं खोया दुलारा है ।
गढ़े मुर्दे भी अपना दर्द कहते हैं सुनो "हलधर"
चिता की लकड़ियाँ गायब हुई ये क्या नज़ारा है ।
- जसवीर सिंह हलधर , देहरादून