ग़ज़ल हिंदी - जसवीर सिंह हलधर
May 25, 2023, 23:54 IST
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मोटे नहीं महीन हैं इतिहास के आंसू ।
मीठे नहीं नमकीन हैं इतिहास के आंसू ।
ये सभ्यता के दर्द समेटे हैं कोख में ,
सदियों की छानबीन हैं इतिहास के आंसू ।
किसने हवा की ताजगी में गंदगी भरी ,
मातम हैं या ज़रीन हैं इतिहास के आंसू ।
लेखा पुराने कारनामों का इन्हें पता ,
पत्थर से भी प्राचीन हैं इतिहास के आंसू ।
जब मंदिरों को तोड़ के ये मस्जिदें बनी ,
वो मज़हबी मशीन हैं इतिहास के आंसू ।
ये घाव मेरे रात दिन आकर कुरेदते ,
करते मुझे ग़मगीन हैं इतिहास के आंसू ।
अब भी समय है सोच लो कुछ तो विचार लो ,
आभास या यकीन हैं इतिहास के आंसू ।
"हलधर" कहा कैसा लगा अहसास तो करो ,
आकाश या ज़मीन हैं इतिहास के आंसू ।
- जसवीर सिंह हलधर, देहरादून