ग़ज़ल हिंदी - जसवीर सिंह हलधर

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मोटे नहीं महीन हैं इतिहास के आंसू ।

मीठे नहीं नमकीन हैं इतिहास के आंसू ।

ये सभ्यता के दर्द समेटे हैं कोख में ,

सदियों की छानबीन हैं इतिहास के आंसू ।

किसने हवा की ताजगी में गंदगी भरी ,

मातम हैं या ज़रीन हैं इतिहास के आंसू ।

लेखा पुराने कारनामों का इन्हें पता ,

पत्थर से भी प्राचीन हैं इतिहास के आंसू ।

जब मंदिरों को तोड़ के ये मस्जिदें बनी ,

वो मज़हबी मशीन हैं इतिहास के आंसू ।

ये घाव मेरे रात दिन आकर कुरेदते ,

करते मुझे ग़मगीन हैं इतिहास के आंसू ।

अब भी समय है सोच लो कुछ तो विचार लो ,

आभास या यकीन हैं इतिहास के आंसू ।

"हलधर" कहा कैसा लगा अहसास तो करो ,

आकाश  या ज़मीन हैं इतिहास के आंसू ।

- जसवीर सिंह हलधर, देहरादून